| يا
                أم عمـرو جـزاك الله مغفـرة | 
            
              | ردي
                على فـؤادي كالذي كانـا | 
            
              | ألست
                احسن من يمشـي على قدم | 
            
              | يا
                أملح النـاس كل الناس إنسانـا | 
            
              | لقد
                كتمـت الهوى حتى تهيمنـى | 
            
              | لا
                أستطـيع لهذ الحـب كتمـان | 
            
              | كاد
                الهـوى يوم سلمانين يقتلـني | 
            
              | وكـاد
                يقتلنـي يـوم ببيدانـا | 
            
              | وكـاد
                يوم لوا حـواء يقتلنـي | 
            
              | لو
                كنت من زفرات البيت قرحانا | 
            
              | لا
                بارك الله فيمن كان يحسبـكم | 
            
              | إلا
                على العهد حتى كان ما كانـا | 
            
              | من
                حبكم فاعلـما للحب منـزلة | 
            
              | نهوى
                أميـركم لو كـان يهوانـا | 
            
              | لا
                بارك الله في الدنيا إذا انقطعـت | 
            
              | أسباب
                دنياك من أسـباب دنيانـا | 
            
              | أبدل
                الليـل لا تسـرى كـواكبه | 
            
              | أم
                طال حتى حسبت النجم حيرانـا | 
            
              | إن
                العيـون التي في طرفهـا حـور | 
            
              | قتلننـا
                ثـم لـم يحييـن قتلانـا | 
            
              | يصـرعن
                ذا اللب حتى لا حراك به | 
            
              | وهن
                أضعـف خلـق الله أركانـا |